Rajesh rajesh

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लेखनी प्रतियोगिता -15-Apr-2023 सबसे पहले आत्मसम्मान

नंदलाल हष्ट पुष्ट व्यक्ति था। नंदलाल भूखा मरने के लिए तैयार था लेकिन वह कोई छोटा मोटा काम नहीं करना चाहता था। क्योंकि छोटी मोटी मेहनत मजदूरी करने से उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंची थी।


नंदलाल कि इस सोच की वजह से उसके बीवी बच्चे गरीबी तंगहाली में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। 

नंदलाल सेहत से तो बहुत तंदुरुस्त था, लेकिन वह पांचवीं कक्षा तक ही शिक्षित था। इसलिए कम पढ़ा-लिखा होने की वजह से उसे मेहनत मजदूरी के अलावा दूसरा काम नहीं मिलता था।

लेकिन नंदलाल का अरमान था, कि वह ऑफिस टेबल कुर्सी पर बैठकर पढ़ाई लिखाई का काम करके पैसा कमाए। 

इसलिए नंदलाल सुबह अपने घर से नहा धोकर निकलकर पूरे दिन बड़े-बड़े ऑफिसों के चक्कर लगाता रहता था। लेकिन कम पढ़ा लिखा होने की वजह से उसे किसी भी ऑफिस में नौकरी नहीं मिल पाती थी। और नंदलाल शाम को निराश थक हार कर अपने घर आ जाता था।

लेकिन नौकरी ढूंढने की इतनी तकलीफ उठाने के बाद भी नंदलाल कोई छोटा काम करके पैसा कमाना नहीं चाहता था।

जब नंद लाल के घर का राशन बिल्कुल खत्म हो जाता था, तो वह मजबूर होकर छोटी मोटी मेहनत मजदूरी करने लगता था।

और घर में कितनी भी परेशानी के बाद 
अगर नंदलाल को उसका ठेकेदार या कोई बड़ा अफसर डांट देता था, तो वह फावड़ा तसला छोड़कर उसी समय अपने घर आ जाता था। 

नंदलाल जब कभी अपने करीबी रिश्तेदार की शादी में जाता था, तो तब तक उसको वह रिश्तेदार खुद खाना खाने के लिए नहीं बोलता था तब तक नंदलाल खाने की प्लेट  को हाथ भी नहीं लगाता था।

एक दिन नंदलाल दूसरे मजदूरों के साथ काम कर रहा था तो उस समय मंदिर के पास भंडारा हो रहा था।

 जब नंदलाल और बाकी मजदूरों का लंच होता है, तो नंदलाल को छोड़कर बाकी मजदूर भागकर भंडारे की लाइन में लग जाते हैं।

सारे मजदूर रबड़ी जैसी खीर गरम आलू पेठे की सब्जी और गरम गरम पूरी पत्तल में लेकर बैठकर खाने लगते हैं।

खीर पूरी आलू की सब्जी नंदलाल का बहुत पसंद भोजन था। और उस दिन नंदलाल ना तो सुबह नाश्ता करके आया था और ना ही दोपहर का खाना घर से लाया था।

 ऐसा पसंद का स्वादिष्ट खाना देखकर नंदलाल की भूख और तेज हो जाती है।

लेकिन नंदलाल भंडारे की लाइन के पास खड़ा होकर अपने आत्मसम्मान की वजह से बार-बार यही इंतजार कर रहा था कि भंडारा करने वाले उसे खुद आकर कहें भंडारा खाने के लिए।

और धीरे-धीरे भंडारा खत्म हो जाता है लेकिन कोई भी नंदलाल को भंडारा खाने के लिए नहीं कहता है।

 भंडारे का स्वादिष्ट खाना देखकर और सुबह से भूखा होने की वजह से नंदलाल भूख की वजह से बेचैन हो जाता है।

और उसी ही समय नंदलाल का ठेकेदार उसे आवाज देकर काम करने के लिए बुला लेता है। और फिर भूखा नंदलाल अपने साथी मजदूरों के साथ जमीन खुदाई के काम में लग जाता है। 

और फिर नंदलाल जमीन खुदाई के काम में लग जाता है। और भूख की वजह से बार-बार अकेले ही बोलता रहता है कि "रबड़ी जैसी खीर आलू पेठे की गरम गरम सब्जी और पूरी का क्या स्वाद होगा।"

और जैसे-जैसे नंदलाल की भूख तेज होती जाती है वह वैसे वैसे चिल्ला चिल्ला कर तेज तेज बोलने लगता है कि "क्या स्वादिष्ट भोजन था। क्या स्वादिष्ट भोजन था।"

नंदलाल की यह बात सुनकर नंदलाल के साथी मजदूर अपना पेट पकड़कर हंस हंस कर लोटपोट हो रहे थे।

 नंदलाल अपने साथ काम करने वाले मजदूरों को जब हंसते हुए देखता है तो नंदलाल अपने साथी मजदूरों से कहता है कि "मैं अपने आत्मसम्मान की रक्षा करने के लिए कठिन से कठिन मुसीबत बर्दाश्त कर सकता हूं।"

नंदलाल की अपने आत्मसम्मान की रक्षा की यह बात सुनकर उसके साथ के सारे मजदूर नंदलाल कि इस बात का ताली बजाकर स्वागत करते हैं। और भूख तेज गर्मी में भूखे पेट मेहनत करने की वजह से नंदलाल बेहोश हो जाता है।

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5 Comments

बहुत खूब

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Punam verma

16-Apr-2023 09:12 AM

Very nice

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Abhinav ji

16-Apr-2023 08:45 AM

Very nice 👍

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